जयपुर, 7 अगस्त । किसान महापंचायत का मानना है कि पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय द्वारा विवाद उत्पन्न करने की मनोवृति के चक्रव्यूह में फंसायी जा रही है ।
महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने आज 13 जिलों के वरिष्ठ किसान नेताओं की तीन घंटे से अधिक समय तक चली बैठक के बाद कहा कि जबकि पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना केंद्रीय जल आयोग की मार्गदर्शिका.2010 तथा मध्य प्रदेश.राजस्थान अंतर्राज्यीय जल नियंत्रण मंडल की 13 वीं बैठक के अनुसार 2014 से 2017 की अवधि में तैयार की गयी। उस समय राजस्थान में केंद्र के सत्तारूढ़ दल का ही शासन था। इसीलिए प्रधानमंत्री ने वर्ष 2018 में 7 जुलाई को जयपुर तथा 6 अक्टूबर को अजमेर की जनसभाओं में इस परियोजना द्वारा 2 लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि की सिंचाई सुविधा तथा अजमेरए जयपुर, दौसा, करौलीए सवाई माधोपुर, झालावाड़, बारां, कोटा, बूंदीए टोंक, अलवर, भरतपुर तथा धौलपुर के 13 जिलों की 40ः जनता को पीने का मीठा पानी मिलने का उल्लेख करते हुए पूरी संवेदनशीलता के साथ निर्णय लेने की घोषणा की।
जाट ने कहा कि इसी के साथ राजस्थान की जनता को केंद्र सरकार द्वारा सकारात्मक रुख अपनाने का आश्वासन दिया था। केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय तो प्रधानमंत्री की इच्छा को भी अनदेखा कर रहा है। इस दिशा में राजस्थान राज्य को आरोपित करने के लिए अपनी बौद्धिक क्षमता का उपयोग कर रहा है।
उन्होने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का प्रकाशित वक्तव्य जिसमें उन्होने कहा था कि ष्पानी की कीमत राजस्थान से ज्यादा कौन जानता है में यह भी उल्लेख है कि ष्केंद्र की यूपीए सरकार थी तो राज्यों को आपस में पानी के बंटवारे को लेकर झगड़ा कराती थी। तब गुजरात सरकार कांग्रेस की छाती पर खड़े होकर नर्मदा का पानी लायी। अब राज्यों में पानी को लेकर कोई झगड़ा नहीं है। लोकसभा चुनाव 2019 में राजस्थान की जनता ने प्रधानमंत्री को भरपूर समर्थन दिया था इसी कारण राजस्थान राज्य में कांग्रेस सरकार होते हुए भी 25 में से 25 लोकसभा प्रत्याशियों को विजयी बनाया था। इसके उपरांत भी केंद्र का जल शक्ति मंत्रालय राजस्थान एवं मध्य प्रदेश राज्यों के मध्य झगड़ा कराने की मानसिकता से ग्रसित प्रतीत होता है।
किसान महापंचायत ने कहा कि यह भी सुअवसर है कि वर्तमान में जल शक्ति मंत्रालय है राजस्थान के पास हैए उनसे न्याय के आधार पर राजस्थान के हितों के संरक्षण के लिए कर्तव्य निभाने की राजस्थान वासियों की सहज अपेक्षा है। अभी तो केंद्र जल शक्ति मंत्रालय द्वारा अपेक्षा के विपरीत कार्य करने से राजस्थान की जनता हतप्रभ है। इस मंत्रालय के सचिव की ओर से 10 मई 2022 को राजस्थान के मुख्य सचिव को संबोधित करते हुए पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना का कार्य रोकने के लिए पत्र प्रेषित किया गया है। इससे जल शक्ति मंत्रालय की नियत जनता के सामने आ गयी। वैसे भी यह कदम संविधान के संघात्मक ढांचे के विपरीत है क्योंकि जल योजनाओं के संबंध में राज्यों को ही क्षेत्र अधिकार प्राप्त है। यह स्थिति तो तब है जब इसी संबंध में मध्य प्रदेश सरकार के सिंचाई मंत्री तुलसी सिलावट के अनुसार राजस्थान एवं मध्य प्रदेश के मध्य किसी विवाद का नहीं होना दर्शाया हुआ है।
किसान महापंचायत का कहना है कि यह सही है कि अभी तक घोषित 16 राष्ट्रीय परियोजनाओं में जल की निर्भरता 75ः है किंतु यह नियमों के अधीन नहीं है बल्कि वहां उपलब्ध जल की मात्रा के कारण है। इस परियोजना से संबंधित लेखों से स्पष्ट है कि
राजस्थान तथा मध्य प्रदेश की अंतर्राज्यीय जल नियंत्रण मंडल की 12 वीं एवं 13वीं बैठक के अनुसार मध्यप्रदेश के अनापत्ति की आवश्यकता नहीं है। बैठकों की कार्रवाई के अनुसार कोई भी राज्य अपनी भूमि पर जलभराव रखें एवं स्वयं के कैचमेंट एरिया के अतिरिक्त 10ः तक पानी ले ले तो दूसरे राज्य से अनापत्ति की आवश्यकता नहीं है बल्कि अनापत्ति स्वतरू मान लेने के अवधारणा है। इसी आधार पर मध्यप्रदेश राज्य ने मोहनपुर एवं कुंडालिया बांधों का निर्माण किया है जिन से 2,86,000 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई हो रही है।
उन्होने कहा कि यह परियोजना 50ः पानी की निर्भरता के आधार पर तैयार की गई है इसे 75ः निर्भरता वाली बनाने के लिए निरंतर राजस्थान की जनता को कोसा जा रहा है। प्रमुख तथ्य यह है कि राष्ट्रीय परियोजना घोषित कराने के लिए कोई विधिए नियमए मार्गदर्शिका नहीं है। केंद्रीय जल आयोग की मार्गदर्शिका 2010 में भी 75ः निर्भरता पर योजना बनाने की किसी भी शर्त का उल्लेख नहीं है बल्कि वर्ष 1983 में सूखा संभावित क्षेत्रों में 50ः निर्भरता पर परियोजना बनाने के लिए शिथिलता प्रदान करने का प्रावधान है।
उन्होने कहा कि मौजूदा परिस्थितियों के कारण राजस्थान ऐसा राज्य है जिसके पास देश के कुल भूभाग का 10ः अंश है तथा जल की उपलब्धता 1ः है। राज्य के 295 खंडों में से 50 खंड ही भूगर्भ जल की दृष्टि से सुरक्षित हैए 38 खंड अर्द्धगंभीर है 10 खंड गंभीरए 194 खंड अति दोहन की श्रेणी में आते हैं शेष तीन खंडों में खारा भूजल है। राज्य में भूजल का हॉस्टल रिचार्ज 10613 एमसीएम है जबकि दोहन 15200 एमसीएम है। राज्य में भूजल पुनर्भरण से लगभग 5000 एमसीएम ज्यादा दोहन हो रहा है। जिससे भूजल स्तर में निरंतर तेजी से गिरावट आ रही है। वर्षा का औसत भी कम है। वर्ष 2011 से 2016 के मध्य और सबसे अधिक वर्षा होने पर भी 450 बांधों में से 25ः बांधों में पानी की आवक शून्य रही थी।
विद्यमान परिस्थितियों में राजस्थान को अपवाद मानते हुए 50ः की निर्भरता पर ही इस परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया जाना अपेक्षित है। 75ः निर्भरता पर तो राजस्थान की एक भी परियोजना तैयार नहीं हो सकती। सामान्य नियमों का अपवाद रखकर शिथिलता प्रदान करने के प्रावधान इसीलिए रखे जाते हैं। केंद्र के अनुसार 75ः निर्भरता पर इसी परियोजना से 200000 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई के प्रावधानों को हटाना पड़ेगा तथा पेयजल के लिए भी पानी की पर्याप्त उपलब्धता नहीं रहेगी।
राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि अभी केन.बेतवा नदी परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया जा चुका है उसी अनुसार पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया जाना जनहित में आवश्यक है। इस दृष्टि से विधि में भी प्रावधान किया जा सकता है।
उपरोक्त तथ्यों के आधार पर केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय द्वारा प्रधानमंत्री के समक्ष प्रस्ताव रखे जाने से इस परियोजना को शक्ति प्राप्त हो सकेगी।
यह अच्छा संकेत है कि राजस्थान के किसानों की ओर से 26 मई 2022 के प्रस्ताव के अनुसार राष्ट्रीय परियोजना घोषित नहीं होने पर भी राजस्थान राज्य की ओर से इस परियोजना को राज्य के संसाधनों के आधार पर पूर्ण करने की घोषणा की गई है। इस वर्ष राजस्थान का बजट 2,94,000 करोड़ रुपये का है जबकि इस परियोजना की लागत 37,247.12 करोड रुपए है जो कुल बजट की 12.67ः ही है।
उन्होने कहा कि राजस्थान के किसानों की ओर से 26 मई 2022 को लिए गए प्रस्ताव के अनुसार प्रोटेस्ट फ्रॉम होम की दिशा में प्रधानमंत्री भारत सरकार को जिला कलेक्टर, उपजिला कलेक्टर के माध्यम से गांव ज्ञापन भिजवाने के लिए तैयारी की जावे। इसी के साथ लोकमत तैयार करने के लिए बृहद जन जागरण के लिए विभिन्न स्तरों पर सभाओं का आयोजन कर संकल्प अभियान चलाया जावे।महापंचायत ने जोर देकर कहा है कि राजस्थान के सांसद एवं विधायको से किसानों द्वारा सीधा संवाद कर उनका भी समर्थन जुटाया जाना चाहिए।