सतीश कुमार शर्मा
वरिष्ठ पत्रकार
अपनी विशिष्ट धमक के साथ आगे बढ़ती कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की बहुचर्चित “भारत – जोड़ो” यात्रा के लिए भौगोलिक दृष्टि से दिल्ली अब दूर नहीं है, राजनीतिक मैदान मारने के लक्ष्य से दूरी अभी बेशक अपरिभाषित है।
विशिष्ट धमक इसलिए कि भारत के दूरस्थ छोर कन्याकुमारी से प्रारंभ हुई करीब तीन – साढ़े तीन हजार किलोमीटर की इस वृहद एवम् सफल पदयात्रा ने आमजनों, पार्टी के अपने कार्यकर्त्ताओं व राजनैतिक विरोधियों – प्रतिद्वंद्वियों में अलग अलग संदेश तथा प्रभाव छोड़ा है।
कहीं प्रशंसा में तो कहीं कहीं कौतूहल भाव से, राजनीति में युवा तेवर से अब प्रौढ़ परिपक्वता में पहुंचे इस चार बार के सदा सक्रिय सांसद के इस “देश – जागरण” अभियान अन्य के प्रति आमजनों में आकर्षण आशातीत रूप से यात्रा के मार्ग में सर्वत्र दिखा है।
इससे कांग्रेस के कार्यकर्त्ता – समर्थकों में जोश और नई आशा – अभिलाषा का संचार हुआ है..;.. ऐसे में पार्टी की पारम्परिक प्रतिद्वंद्वी तथा केन्द्र व कई प्रांतों में सत्तारूढ़ मोदी – शाह नीत भारतीय जनता पार्टी में बैचैनी और प्रतिरोध का भाव उपजना स्वाभाविक था, जो साफतौर पर उजागर भी हुआ है।
ये सब भाव स्वयं राहुल की पहल पर उनकी पार्टी द्वारा आयोजित इस गांधीवादी जनसंपर्क अभियान की यथोचित सफलता के ही द्योतक हैं।
सात सितंबर को कन्याकुमारी से चली इस (गैर राजनीतिक) यात्रा को अब तक केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र तथा मध्यप्रदेश सरीखे बड़े व राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण राज्यों में मुख्य आयोजक कांग्रेस की उम्मीदों से कहीं ज्यादा मिले जन समर्थन से देश की इस प्राचीनतम् पार्टी के खेमों में खुशी का माहौल बनना लाजमी था।
इससे भी बढ़कर राजस्थान में 4 दिसंबर को प्रवेश के साथ ही 21 दिसंबर को हरियाणा के लिए प्रस्थान तक प्रदेश के छह जिलों के 485 किलोमीटर लम्बे ‘रूट’ पर सड़क के दोनों तरफ उमड़ी भीड़ ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, स्वयं राहुल गांधी तथा जयराम रमेश समेत पार्टी के समूचे शीर्ष नेतृत्व को गदगद कर दिया।
यह स्वाभाविक भी था, क्योंकि जब यह यात्रा झालावाड़ के रास्ते धमाकेदार प्रवेश कर रही थी तब यहां अशोक गहलोत के नेतृत्ववाली कांग्रेस सरकार अपनी चौथी वर्षगांठ मनाने की तैयारी कर रही थी। प्रदेश से प्रस्थान करने से पूर्व राहुल गांधी समेत यात्रा दल के लोगों ने सालगिरह के जलसों में शिरकत कर समारोह की धूमधाम – रौनक दोहरी कर दी।
इस रूप में देखा जाए तो यात्रा से पूर्व वर्षों से चल रही आंतरिक प्रतिद्वंदिता के कारण प्रदेश में पार्टी, मुख्यमंत्री गहलोत तथा पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के दो गुटों में बंटी थी। यात्रा ने फिलहाल तो दोनों को एक कर दिया, यानि यात्रा ने पार्टी के लिए अगले वर्ष एकता समन्वय के साथ एकजुट होकर चुनाव में जाने का आधार तो बना दिया, बशर्ते प्रादेशिक नेता अनुशासित हो गुटबाजी को फिर पनपने ना दें।यह मुश्किल तो बहुत है परंतु असम्भव नहीं। ये ही हर्ष और शंका मिश्रित भाव नेतृत्व के जेहन में भी दिखते हैं।
यात्रा के नायक राहुल तथा समूचे पैदल-मार्च में छाया की तरह उनके साथ निभा रहे पार्टी के महामंत्री (मीडिया) जयराम रमेश ने यात्रा के लिए राजस्थान में मिले जनसमर्थन को सर्वश्रेष्ठ बताया है। मुख्य मंत्री अशोक गहलोत ने तो इस आयोजन को पार्टी के लिए वरदान करार दिया है।
प्रशंसा तथा गर्व की अभिव्यक्ति की बानगी तो देखिए, सफलता ने कैसे राजनैतिक दल और नेताओं को साहित्य तथा इतिहास के ज्ञान में डुबकी लगवा दी है। अभिभूत कांग्रेस ने राजस्थान के लोगों का आभार प्रकट करने के लिए फेसबुक पर लिखे पोस्ट में राजस्थानी के महाकवि कन्हैया लाल सेठिया की कविता का सहारा लिया है ::-
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“आ तो सुरगां नै सरमावै,
ईं पर देव रमण नै आवै,
ईं रो जस नर नारी गावै,
धरती धोरां री !
#BharatJodoYatra ने शक्ति और भक्ति की भूमि राजस्थान में कन्हैयालाल सेठिया जी की इन पंक्तियों को महसूस किया है।…
…मेहमाननवाजी के लिए, प्यार और मोहब्बत के लिए घणो आभार राजस्थान 🙏”
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राजस्थानियों को इसी तरह का साहित्यिक धन्यवाद ज्ञापन राहुल गांधी ने व्यक्तिगत तौर पर भी किया है ::-
“मीठी बोली और फ़ौलादी जिगर – ये है वीरों की भूमि, म्हारा राजस्थान !…
… भारत जोड़ो यात्रा को अद्वितीय सम्मान और समर्थन देने के लिए सभी प्रदेशवासियों को मेरा दिल से धन्यवाद। राम राम सा !”
मुख्यमंत्री गहलोत जिनकी रणनीति तथा व्यक्तिगत निगरानी व प्रतिभागिता की बदौलत यात्रा को राज्य में अभूतपूर्व समर्थन मिला, का कहना था यह पार्टी के लिए वरदान साबित होगी।
लेकिन पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने व्यवहारिक सजगता दिखाते हुए कहा कि यात्रा ने पार्टी को एक अवसर प्रदान किया है। इस मौक़े से आगामी महीनों में राजनीतिक (चुनावी) सफलता के बारे में वक्त बताएगा। हम इतना प्रचार नहीं करते जितना विरोधी करते हैं…!
…. यात्रा की सफलता हमारे लिए वरदान है, परंतु इससे वोट हासिल करना संगठन पर निर्भर करता है। इस राह में कई चुनौतियां हैं एकता, अनुशासन तथा एकजुटता की इसके लिए ज़रूरत है। नेतृत्व के स्तर पर शंका – चिंता सराहनीय है, बशर्ते इसे चिंतन का रूप देकर कार्यकर्ताओं में मेहनत तथा अनुशासन यथाशीघ्र सुनिश्चित किया जाए..।”
इस यात्रा से जितने हर्षित कांग्रेस जन है, स्वाभाविक है उतनी ही खीझ व बैचैनी उनके कट्टर राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी भाजपा के खेमों में दिखती। ऐसा ही हुआ भी, जोरदार शुरुआत के मद्देनजर भाजपा के नेताओं – प्रवक्ताओं ने नियोजित रूप से यात्रा तथा इसके नायक के खिलाफ हर छोटे मोटे मसले को लेकर मोर्चा खोल दिया।
राहुल गांधी के कपड़े, टी – शर्ट, उनके जूते और यहां तक कि शर्ट – जूतों का रंग और ब्राण्ड भी आलोचना का विषय बने। राहुल किन लोगों से मिलते हैं, किस से हाथ मिलाते हैं, किस का हाथ पकड़ते हैं, किस को गले लगाते हैं, ये सब भी टीका – टिप्पणी से नहीं बचे।
इतना ही नहीं मोदी – शाह नीत भाजपा ने यात्रा के जवाब में जन आक्रोश यात्रा भी शुरू करदी जिसका प्रतिद्वंद्वी दल के नेताओं के आरोपों के जवाब तथा प्रांत की सत्तासीन गहलोत सरकार के विरोध – अभियान के लिए उपयोग किया गया।
…और अब तो गांधी – नेहरू राजनीतिक धारा के प्रतिनिधि के रूप में चल रही उनकी यात्रा में उमड़ी भीड़ ने केंद्र की मोदी सरकार को कोरोना महामारी के अस्तित्व की याद भी दिला दी है। यात्रा की बढ़ती गूंज से परेशान सत्तारूढ़ पार्टी ने तुरंत इस महामारी – कार्ड को हथियार के रूप में खेल दिया और राहुल गांधी को लिख दिया या तो ‘कोविड-प्रोटोकॉल’ का पालन करो और भीड़ से भी कराओ अन्यथा यात्रा को ही स्थगित कर दो।
जिस नाटकीय अंदाज में अपने तीन राजस्थानी सांसदों की मांग पर त्वरित कार्रवाई करते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख माण्डविया ने राहुल गांधी को पत्र लिखकर उक्त परामर्श दिया उससे कांग्रेस को सरकार पर बौखलाहट में विपक्ष के प्रति पक्षपात पूर्ण सख्ती का आरोपी जड़ने का अवसर प्रदान किया।
मल्लिकार्जुन खड़गे – गांधी परिवार नीत पार्टी का कहना था कि कानून का पालन करने के वह खिलाफ नहीं है, लेकिन जब विधानसभा चुनावों समेत हाल ही में विभिन्न मौकों पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व उनके अन्य पार्टी सहयोगियों द्वारा किये गये भीड़भरे वृहद कार्यक्रमों के वक्त मंत्रीजी को कोरोना
प्रोटोकॉल की याद नहीं आई।
“असल में सरकार हमारी यात्रा से डर गई है”, यही प्रतिक्रिया राहुल गांधी व मुख्यमंत्री गहलोत समेत कई नेताओं ने दी।
असल में जब यात्रा राजस्थान में थी तब ही तीन स्थानीय सांसद पी पी चौधरी, निहाल चंद्र मेघवाल तथा देवजी पटेल ने विवेक या अन्य प्रेरणा से चिकित्सा मंत्री को पत्र लिखकर यात्रा को स्थगित कराने की मांग की थी।
केन्द्र सरकार ने चिकित्सा मंत्री के पक्ष को पुष्ट करने के लिए तीन दिनों में दो उच्च स्तरीय समीक्षा बैठकें करके चीन में बढ़ते महामारी के प्रकोप के मद्देनजर हालात की समीक्षा की, राज्यों को सचेत किया गया, भीड़भरे कार्यक्रमों में मास्क पहनने की हिदायत जारी हुई। कहा जा रहा है कि संसद का शीतकालीन सत्र भी समय से पूर्व सम्पन्न हो सकता है।
भाजपा द्वारा राजस्थान में चल रही अपनी जन आक्रोश यात्रा को स्थगित करने की खबर भी उड़ गई लेकिन बाद में पार्टी प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया की तरफ से कहा गया कि उनकी यात्रा प्रोटोकॉल पालना के साथ जारी रहेगी।
ये सब हड़बड़ी और जल्दीबाजी के लक्षण नहीं है तो क्या है ?
सरकार पर कांग्रेस द्वारा लगाये आक्षेप यदि सही हो तो भी महामारी के प्रति स्वास्थ्य मंत्री की सलाह और उसी क्रम में दिखाई गई प्रशासनिक सक्रियता का सम्मान किया जाना चाहिए। चाहे देश में कोरोना के नये मरीजों की संख्या 150 प्रतिदिन के स्तर पर गिर गई हो, फिर भी महामारी अभी गई तो नहीं।
वैसे भी सरकार की इस पहल और कार्रवाई से राहुल गांधी की यात्रा की महत्ता ही रेखांकित हुई है। पिछले कोरोना काल में यही राहुल गांधी थे जिन्होंने महामारी के ख़तरों के प्रति कई बार सरकार को समय से पूर्व चेताया था, परंतु उनकी बात को तब अनसुना किया गया था। अब उनकी पदयात्रा ने ही सरकार को वैसे ही ख़तरों की याद दिलाई है।
ये सफलताए पार्टी में तात्कालिक हर्ष और संतोष का कारण तो हो सकती है लेकिन पार्टी का राजनीतिक लक्ष्य इससे कहीं अधिक बड़ और दूर है। यात्रा निर्धारित अंतिम पड़ाव बेशक श्रीनगर है, लेकिन पार्टी की असल मंजिल तो लालकिला (दिल्ली) ही है।
इस मंजिल को फतेह करने के लिए लम्बी व मुश्किल लड़ाई कांग्रेसी यौद्धाओं को करने होगी। पदयात्रा उस यात्रा के लिए केवल अच्छा मैदान सजा सकती है, जीत तो यौद्धाओं के रण कौशल से ही हो पायेगी।
यह केवल विश्लेषकों का आंकलन नहीं है, कांग्रेस का आला नेतृत्व भी इस तथ्य से वाक़िफ है और यात्रा को पार्टी के लिए एक मौके के रूप में देखता है। इस मौक़े को पार्टी के लिए अगले चुनावों में वरदान में बदलने के लिए कार्यकर्त्ताओं को सक्रिय करने की रणनीति बनाने में जुट गया है।
इस दृष्टि से राजस्थान के लिए केवल ये यात्रा ही नहीं बल्कि उसका अभी प्रदेश में से निकलना निश्चित रूप से एक वरदान है। प्रदेश में विधानसभा चुनाव मात्र एक वर्ष दूर है, पार्टी अभी धड़ा बंधी के ख़तरों को लेकर निश्चिंत नहीं है। मुख्यमंत्री गहलोत व उनके पूर्व नायब पायलट के बीच समन्वय कितना और कब तक कायम रहे इसपर सारा दारोमदार रहेगा।
पार्टी आलाकमान कमान की भूमिका अहम होगी, उस स्तर पर त्वरित तथा कारगर निर्णय अनिवार्य है। पंजाब में पार्टी की राज्य इकाई के संकट के हल के वक्त दिखी अनिश्चय और दुविधा की पुनरावृत्ति से राजस्थान में बचना होगा।
पंजाब ही नहीं राजस्थान में भी लम्बे समय तक पार्टी में अवहेलना व पार्टी विरोधी हरकतों की आलाकमान द्वारा सहृदयतावश अनदेखी करना पार्टी के लिए नुकसानदायक साबित हुआ है। मुख्यमंत्री गहलोत का पूरा कार्यकाल इस क्लेश से जूझते ही बीत रहा है। एक मुख्य मंत्री को शासकीय कार्य और पार्टी नीतियों के अनुरूप ऐजेण्डा लागू करने का वक्त तो देना पड़ेगा।
जाहिर है इसके कारण मुख्यमंत्री व पार्टी नेतृत्व दोनों परेशान रहे और आम पार्टी जन चिंतित है। देश भर में व्याप्त विषम राजनीतिक परिदृश्य में पार्टी में सिरफुटव्वल चिंता को और गहराता रहा है।
आलाकमान स्थिति की गम्भीरता को देखते हुए अभी भी पार्टी राज्य इकाई में एकता स्थापित करने में जुटा हुआ है, स्वयं राहुल गांधी तथा जयराम रमेश ने भी यात्रा के दौरान
इस काम को बहुत महत्व दिया और प्रयास किये और अंततः अलवर यात्रा के हरियाणा के लिए अग्रसर होते समय राहुल गांधी इतना ही कह पाये “जल्दी अच्छी खबर मिलेगी”।
राष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य के मद्देनजर पार्टी को अपने वर्चस्व वाले राज्यों में अपने आधार को अक्षुण्ण रखना है और वोटों का और क्षरण रोकना है। इस दृष्टि से राजस्थान हिन्दी हृदय क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण कांग्रेसी गढ़ है, यहां पार्टी को पंजाब तथा गुजरात विधानसभा चुनावों जैसी पराजय सहन करने योग्य नहीं होगी।
सन् 2024 के आमचुनावों में मजबूती से सत्तारूढ़ भाजपा का मुकाबला करने मैदान में उतरने के लिए कांग्रेस पार्टी को राजस्थान में विधानसभा चुनाव (2023) जीतना अनिवार्य है।
क्लेश के बावजूद गहलोत सरकार की स्वास्थ्य, सामाजिक सुरक्षा तथा लोक कल्याण की योजनाओं में बड़ी उपलब्धियों तथा संवेदनशील शासन के बूते पार्टी चुनावों में मैदान मारने में सफल तो हो सकती है, बशर्ते गुटबाजी तथा आंतरिक वाक् युद्ध पर पूर्ण विराम के साथ एकजुट पार्टी कार्यकर्ता तत्काल सक्रिय हो जाएं।
आलाकमान कमान क्या मुख्यमंत्री गहलोत और उनके पुराने नायब पायलट के बीच अनुभवी महारथी और कुशल सारथी के समान कोई विश्वसनीय तथा मित्रवत सहभागिता स्थापित कर सकता है..;.. पार्टी को संकट से निकालने के लिए..! मुश्किल शायद हो असम्भव नहीं।