जनवरी में सजेगा उत्सवों का गुलदस्ता

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जयपुर 12 जनवरी। पर्यटकों के लिए जनवरी माह में पर्यटन विभाग द्नारा जयपुर में काइट फेस्टीवल,बीकानेर में कैमल फेस्टीवल और नागौर में नागौर पशु मेला आयोजित किए जाएंगे। इनमें पर्यटकों को जयपुर, बीकानेर और नागौर की कला-संस्कृति,परम्पागत परिधान और पारम्परिक खान-पान और हस्तशिल्प आदि को नजदीक से देखने का मौका मिलेगा।

बीकानेर में आयोजित कैमल फेस्टीवल की अन्तरराष्ट्रीय पर अपनी पहचान है। इस फेस्टीवल में प्रदेश के राज्य पशु ऊंट के विभिन्न अंदाज देखने को मिलते हैं। राजस्थान पर्यटन विभाग की ओर से आयोजित इस फेस्टीवल में इस बार बीकानेर कॉर्निवाल आकर्षण का केंद्र रहेगा। उत्सव में ऊंट दौड़, ऊंटों को सजना और संवारने की प्रतियोगिताएं, ऊंटों की कलाबाजी के साथ ऊंट के दूध से बने उत्पाद सैलानियों के लिए कौतुहल का विषय रहते हैं।

इस उत्सव के दौरान राजस्थानी लोक संगीत व नृत्य की प्रस्तुतियों के बीच राजस्थानी खान-पान की स्टॉल्स सौलानियों को अपनी ओर खींचती है। ऊंटों का सबसे बडा प्रजनन केंद्र बीकानेर शहर ही है। बीकानेर में ही सेना के लिए ऊंटों को यहां पर तैयार किया जाता है। सेना के लिए तैयार किए जाने वाले ऊंटों को आम भाषा में ‘गंगा रिसला’ कहकर पुकारा जाता है।

हर वर्ष जनवरी और फरवरी के महीने के बीच आयोजित, नागौर के मवेशी मेले के रूप में लोकप्रिय है इस मेले में करीब 10,000 बैल, ऊंट और घोड़ों का व्यापार होता है। पशुओं को सुंदर ढंग से सजाया जाता है और यहां तक कि उनके मालिकों रंग-बिरंगे और परम्परागत वेशभूषा में दिखते हैं। घोड़े और अन्य पशुओं के अलावा यहां मसाले का भी व्यापार किया जाता है।

इस मेले में मिर्ची बाजार (भारत का सबसे बड़ा लाल मिर्च बाजार), लकड़ी की वस्तुओं की बिक्री, लोहे के शिल्प और ऊंट के चमड़े के सामान भी शामिल हैं। मेले के दौरान कई खेल व प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं। इसमें टग-ऑफ़-वार, ऊंट नृत्य और अश्व नृत्य शामिल हैं। नागौर मेला अपने बाजीगरों, कठपुतलियों, कहानीकारों आदि के लिए भी प्रसिद्ध है।

माना जाता है की कठपुतली कला के जनक भाट जाति के कलाकार नागौर से ही संबंध रखते हैं। नागौर राजस्थान में अपने पशुओं विशेषकर बैलों के लिए ख्याति प्राप्त है। यहां के बैलो को देश के विभिन्न प्रान्तों से आए किसान बेहद पसंद करते हैं।
14 जनवरी को जयपुर में पतंग उत्सव आयोजित किया जाएगा ।