सतीश कुमार शर्मा
वरिष्ठ पत्रकार
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की बहुविध विश्वसनीय घोषणा के बाद जयपुर के तत्कालीन राजाओं द्वारा सवा सौ साल पूर्व बनाये रामगढ़ बांध में जल के हिलोरों के साथ अतीत का गौरव और भव्यता निकट भविष्य में ही लौटने की उम्मीदें प्रबल हो गयी है।
लगभग एक शताब्दी तक गुलाबी नगर के वाशिंदों की प्यास बुझाने वाले इस बांध में पानी के अभाव में विगत 20-25 वर्षों से जल आपूर्ति बंद है। पिछले एक – डेढ़ दशक से तो पानी सूख जाने के कारण अतीत की जल प्रबंधन तथा सुदृढ़ बांध निर्माण तकनीक का प्रतीक यह जलाशय खेल के वृहद मैदान जैसा हो गया है।
लगभग 66-फुट (19.85 मीटर) भराव क्षमता वाले इस जलाशय को बीसलपुर बांध के पानी से भरने की सार्वजनिक घोषणा कुछ दिन पूर्व मुख्यमंत्री गहलोत ने जमवारामगढ़ में ही एक समारोह में की है।
तीन बार के मुख्यमंत्री गहलोत को जानने – समझने वाले इस बात से वाकिफ है कि वे हवा में घोषणाएं करने के आदी नहीं है। इस विषय में भी सार्वजनिक वक्तव्य देते समय मुख्यमंत्री ने पूरी गम्भीरता बरती है। उन्होंने विशेषज्ञों एवम् सम्बंधित विभाग के अधिकारियों से विस्तृत चर्चा की है। राज्य सरकार के अधिकारीगण भी इस विषयक कार्यों की योजना, विकल्पों का खाका खींचने और उनको क्रियान्वित करने के लिए गत डेढ़ – दो साल से लगे हैं कुछ स्थानों पर कार्य भी शुरू हुआ है। भविष्य की जरूरतों के मद्देनजर जयपुर लाने के लिए बीसलपुर में सात टीएमसी पानी अतिरिक्त भी आरक्षित किया गया है।
सरकार की परिकल्पित और विचारणीय योजना के केन्द्र में बीसलपुर से अधिक मात्रा में पानी जयपुर लाना और यहां आमेर के पास बंध की घाटी पम्प हाउस से आगे रामगढ़ की सप्लाई पाइप लाइन के जरिए रामगढ़ बांध में डालना है।
इस उद्देश्य से प्रचुर मात्रा में पानी सुनिश्चित करने के लिए बीसलपुर बांध की भराव क्षमता यानी ऊंचाई बढ़ाने और ईस्टर्न राजस्थान कैनाल सिस्टम के जरिए चम्बल नदी का पानी बीसलपुर बांध में पहुंचाने का विचार भी है।
मुख्यमंत्री गहलोत के रामगढ़ बांध को दिये आश्वासन को बहुविध विश्वसनीय मानने के आधार केवल अधिकारियों के विचार और प्रयास ही नहीं है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि जल संरक्षण और जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने में लगे पर्यावरणविद् डॉ राजेन्द्र सिंह ने गहलोत की घोषणा को सुविचारित और व्यावहारिक रूप से उपयोगी बताते हुए सराहना की है।
जल तथा जल स्रोतों संरक्षण तथा पुनर्जीवन के कार्यों के लिए दुनिया में नाम कमाने और मैग्सेसे तथा स्टाकहोम वाटर प्राइज सरीखे कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित, सिंह को जलपुरुष के नाम से अधिक जाना जाता है, वे अकेले राजस्थान में ही अपने गैर-सरकारी संगठन तरुण भारत संघ के तत्वावधान में अब तक पांच नदियां को तथा सैकड़ों गांवों में जोहड़- जलाशयों को पुनर्जीवित कर चुके हैं ।
रामगढ़ बांध क्षेत्र तथा उसके भराव के स्त्रोतों को पानीदार बनाने का प्रयास भी वे दशकों पहले कर चुके हैं परंतु स्थानीय लोगों में रूचि तथा सहयोग के अभाव में उन्होंने कार्य छोड़ दिया। अब डॉ सिंह गहलोत के निश्चय से ख़ुश व संतुष्ट हैं।
वे कहते हैं “मुख्यमंत्री के निर्णय में सबसे उत्साह वर्धक बात जो है वह है दीर्घकालिक रूप से अतिरिक्त जल उपलब्धता के प्रति निश्चितता। वह मौजूदा योजना में है। दो दशकों पूर्व बना बीसलपुर बांध अब तक छह बार 2004, 2006, 2014, 2016, 2019 और 2022 में पूरा भर गया था और जल स्तर वांछित निशान तक बनाये रखने के लिए बांध की मोरियां खोल कर कई दिन तक पानी व्यर्थ बहाना पड़ा। गत वर्ष ही बांध के पूरा भरने के बाद करीब 40 – 45 दिन तक मोरियां खोलनी पड़ी। इस वर्ष भी अभी से पानी की तेज आवक बनी हुई है। इसके पूरे भरने और ब्लड गेट (मोरियां) खुलने की पूरी आशा है।इस व्यर्थ बहने वाले पानी को बचाया जाना आवश्यक है।
विशेषज्ञों का कहना है मानसून में बीसलपुर के भरने के बाद रामगढ़ बांध में पानी डाला जा सकता है। इसके लिए बांध पर पानी का केवल प्रारंभिक ट्रीटमेंट किया जाय और बिना क्लोरिनेशन पानी रामगढ़ के बांध में भरा जाय।
वर्तमान में बीसलपुर बांध से जयपुर व अजमेर समेत 21 शहरों और 2800 गांवों को पानी मिलता है।
सिंह कहते हैं सात बार मोरी (ब्लड गेट खोलना) भरोसा दिलाता है कि रामगढ़ बांध के लिए भी पानी वहां से उपलब्ध होगा। इस अतिरिक्त जल की उपलब्धता हमेशा सुनिश्चित रखने के लिए वांछित और व्यावहारिक उपाय तो यही होगा कि बीसलपुर बांध की ऊंचाई 2-3 मीटर बढ़ा दी जाये। यह आसान और व्यावहारिक काम है।
वे चम्बल से पानी बीसलपुर लाने के को ज्यादा व्यावहारिक नहीं मानते। इसमें शाय़द “वाटर लिफ्टिंग” से सिंह सहमत नहीं हैं। सिंह के अनुसार बीसलपुर से पानी लाने में लिफ्ट करने की या तो जरूरत ही नहीं होगी या फिर नाम मात्र की ही लिफ्टिंग होगी
जो भी हो, राज्य सरकार ने तो बीसलपुर और ईसरदा बांधों को कालीसिंध नदी के पानी से भरने के लिए काम शुरू कर दिया है और इसके लिए पर्याप्त बजट भी मंजूर कर दिया है।
यहां यह सवाल उठना लाजिमी है कि राजधानी जयपुर की पानी की जरूरत रामगढ़ बांध की बजाय अब बीसलपुर से पूरी हो रही है तो रामगढ़ बांध को भरने के लिए मुख्यमंत्री और उनकी सरकार महत्व क्यों दे रही है। इसका एक नहीं कई कारण हैं, जिनकी अनदेखी अशोक गहलोत सरीखा संवेदनशील मुख्यमंत्री तो नहीं कर सकता।
सर्वोपरि कारण तो यह है कि रामगढ़ बांध केवल जयपुर का जल-दाता ही नहीं था इससे भी बढ़कर कर एतिहासिकता, पर्यटन, और विधिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
रामगढ़ बांध सन् 1876 तक जमवा माता के मंदिर के पास झील या जलाशय जैसा था, तत्कालीन शासक, महाराजा रामसिंह(द्वितीय) ने पहली बार 1876 में इसके पानी से रामगढ़ कस्बे को जलापूर्ति करने का निर्णय लिया और इसी के साथ उन्होंने अपने राज्य की सेवा नियुक्त ब्रिटिश इंजीनियरों के मार्ग दर्शन में यहां पानी सप्लाई के लिए बांध बनाने का भी निश्चय किया।
महाराजा रामसिंह की इस सोच को मूर्त रूप दिया उनके उत्तराधिकारी – पुत्र महाराजा माधोसिंह (द्वितीय) ने सन् 1897 में यहां नायाब तकनीक से बनने वाले आधुनिक बांध की नींव डालकर। यह बांध 1904 में बनकर तैयार हुआ और तब से लगभग एक शताब्दी तक प्यासों को पानी पिलाता रहा, चाहे वो इंसान हो, अन्य प्राणी है या फिर प्यासे खेत हो। इससे जयपुर शहर को जलापूर्ति 1931 में नियमित रूप से शुरू हुई जो 1999 तक चलती रही। जयपुर और रामगढ़ कस्बे व समीपवर्ती क्षेत्र समेत दौसा व लालसोट कस्बों तक यहां से पानी पहुंचाया जाता रहा।
बांध के निर्माण में उस युग में जयपुर रियासत के राजाओं की भविष्योन्मुखी सोच और समकालीन राजनीतिक व्यवहार और तकनीकी उन्नयन की भी झलक मिलती है।
जब रामगढ़ का बांध बनने (बंधने) लगा तो उसके वृहद आकार, भराव क्षमता की कहानियां सुन कर पड़ोसी राज्य भरतपुर को बांध के टूटने की स्थिति में अपने डूबने-बहने की चिंता हुई। भरतपुर के महाराजा ने जयपुर दरबार को लिखा। जयपुर की तरफ से बांध बनाने में लगे ब्रिटिश इंजीनियरों व देशी मिस्त्रियों ने भरतपुर राज्य को लिखित में गारंटी दी कि बांध सर्वोत्तम मैटेरियल व उन्नत तकनीक की बदौलत इतनी मजबूती के साथ बनाया जा रहा है कि कभी नहीं टूटेगा। बांध की नींव और आधारभूत ढांचे में मणों सीसा भरा जा रहा है कि इसके टूटने का कोई ख़तरा नहीं होगा।
यह गारंटी शब्दशः सच साबित हुई, वह भारी मुसलाधार वर्षा कर जमाना था, जयपुर समेत ढूढ़ाड़ अंचल में 1924, 1975 तथा 1981 में भीषण बाढ़ व अतिवृष्टि के हालात बने, परंतु बांध अपनी मजबूती से क्षति रहित खड़ा रहा। एक मौक़े पर तो बांध से नौ फुट की चादर कई दिनों तक चली….. बांध बेअसर रहा।
मुख्यमंत्री के फैसले का सबसे ज़्यादा महत्व अदालती मुकदमेबाजी को लेकर है। अगर डेढ़ सौ साल पुराने इस जलाशय में बीसलपुर का पानी फिर हिलोरें मारने लग जाय तो राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा एक दशक से ज्यादा पुराने एक मुकदमे में दिये आदेश की पालना हो पायेगी, जिसको लागू करने में असमर्थता के कारण राज्य के उच्चाधिकारियों को कई बार न्यायालय की प्रताड़ना सहनी पड़ी है।
असल में वर्ष 2011 में न्यायालय ने इसे ऐतिहासिक बांध को बचाने के मामले में संज्ञान लिया सुनवाई के बाद आदेश दिया कि बांध में पानी की उपलब्धता सुनिश्चित कर पुनर्जीवित किया जाय। इसकी हालत के कारणों की गहराई से जांच कर इस जलाशय को पुनर्जीवित करने के लिए विशेष कमेटी बनाई। कमेटी ने बांध के जल स्रोतों के रास्तों में अतिक्रमण और एनीकेट बनने को बांध की बर्बादी का कारण माना। इसके रास्ते में 200 एनीकेट और 800 से ज्यादा अवैध निर्माण कार्य मिले।
प्रयासों के बावजूद बांध के भराव के रास्ते में आयी बाधाओं को दूर नहीं किया जा सका, इसलिए अधिकारी डांट खाते रहे।
अब मुख्यमंत्री बांध को भर कर इसका गौरव लौटा पाये तो उनको इस श्रेणी के जटिल व समस्याग्रस्त स्थल पर अदालती आदेश की पालना कराने का श्रेय दूसरी बार मिलेगा। इससे पूर्व अपने पहले शासनकाल (1998-2003) में गहलोत जयपुर के परकोटे वाले क्षेत्र के बाजारों में बरामदे खाली कराने के बरसों पुराने उच्च न्यायालय के आदेश की पालना कराने में सफल रहे थे।
पर्यटन और खेलों के इतिहास में भी रामगढ़ बांध ने गौरव पूर्ण उल्लेख पाया है। इस बांध की भव्यता और हिलोरें मारती जलराशि को देख कर अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रशासकों ने 1982 के एशियाई खेलों में नौकायन प्रतिस्पर्धा यहां आयोजित कराकर इसको अंतरराष्ट्रीय ख्याति दिलाई थी।
तब से इस बांध स्थल का पर्यटन और पिकनिक स्पॉट के रूप में ख्याति के भी चार चांद लग गये थे…. परंतु वह प्रसिद्धि भी अब अतीत में ही सिमट कर रह गयी है।
मासिक समाचार पत्र ” माइंड प्लस ” के 15 जुलाई 2023 के अंक से साभार