सरसों को लेकर किसान नई दिल्ली के जंतर मंतर पर उपवास करेंगे

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जयपुर, 28 मार्च : सरसों के दाम दिलाने की मांग को लेकर किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट के नेतृत्व में 101 किसान आगामी 6 अप्रैल को नई दिल्ली में जंतर मंतर पर उपवास करेंगे ।

महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट किसानों को सरसों के दाम दिलाने की मांंग को लेकर कल ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र भेज चुके है ।

उन्होने पत्र में सरसों के दाम दिलाने का आग्रह करते हुए एक वर्ष में एक क्विंटल पर 3000 रुपये कम होने को अनहोनी घटना बताया है ।उन्होने लिखा है कि इस वर्ष किसानों को अपनी सरसों की उपज 4500 रुपये प्रति क्विंटल में बेचनी पड़ रही है । जबकि घोषित समर्थन मूल्य 5450 रुपये प्रति क्विंटल है । गत वर्ष किसानों को 7444 रुपये प्रति क्विंटल सरसों के दाम प्राप्त हुए थे , इन भावों में गिरावट के लिए भारत सरकार की आयात – निर्यात नीति एवं न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दाम प्राप्ति के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य से सम्बंधित नीति उत्तरदायी है ।

पत्र में लिखा है कि पाम आयल के आयात शुल्क को शून्य तक लाने के कारण सरसों के दामो में अप्रत्याशित गिरावट आई है । चार वर्ष पहले परिष्कृत एवं अपरिष्कृत ऑयल पाम पर 45% आयात शुल्क था । इसके अतिरिक्त परिष्कृत पाम आयल पर 5% सुरक्षा शुल्क भी था । सरकार की नीतियों कारण इनको शून्य पर लाया गया ।

जाट ने पत्र में लिखा है कि किसानों की आय के संरक्षण के नाम पर तिलहन एवं एवं दलहन के लिए वर्ष 2018 में तैयार की गई “प्रधान मंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान” में इन उपजो के कुल उत्पादन में से 25% से अधिक खरीद नहीं करने के लिए प्रावधान कर 75% उपज को न्यूनतम समर्थन मूल्य की परिधि से बाहर कर दिया गया है । यह स्थिति तो तब है जब एक दशक में 7,60,500 करोड रुपये विदेशों से खाद्य तेल मंगवाने के नाम पर खर्च किए गए और यह खर्च वर्ष 2021-22 में तो 1,41,500 करोड रुपये हो गया जो अब तक की आयातित अवधि में सर्वाधिक है ।

पत्र में यह भी प्रकट किया गया है कि पाम आयल रंगहीन, स्वादहीन एवं सुगंधहीन पेड़ों का तरल पदार्थ है । जिसे खाद्य तेल के नाम पर जनता को परोसना सरकारों के लिए तो किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है । इसी आधार पर पाम आयल को खाद्य तेल नहीं मानते हुए उसे खाद्य तेलों में सम्मिलित नहीं करने का आग्रह किया गया है । पत्र में पाम आयल के आयात पर 100% से अधिक आयात शुल्क लगाने की भी आवश्यकता बताई गई है । देश में खाद्य तेलों में एक तिहाई अंश सरसों का है । इसी प्रकार परंपरागत खाद्य तेल तिल, रामतिल, मूंगफली, खोपरा आदि के विकास के लिए सरकार ध्यान नहीं दे रही बल्कि खाद्य तेल के विकास के नाम पर पाम आयल में ही संपूर्ण खर्च कर रही है, इसीलिए राष्ट्रीय पाम मिशन के लिये पर 11,040 करोड़ रुपए स्वीकृत किये है ।

पत्र में यह भी जिक्र किया गया है कि कि भारत सरकार ने कृषि लागत एवं मूल्य आयोग द्वारा सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तेल अंश के आधार पर संयोजित करते हुए 35% तेल अंश के ऊपर प्रत्येक अंश पर 12.97 रुपये की लागत जोड़ने की अनुशंसा को भी सरकार ने स्वीकार नहीं किया है यदि इस अनुशंसा को स्वीकार कर लिया जाता तो 48% तेल अंश वाली सरसों के गत वर्ष एक क्विंटल का न्यूनतम समर्थन मूल्य 6118 रुपये निर्धारित होता, किंतु सरकार ने गत वर्ष 5050 रुपये प्रति क्विंटल न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किया था, जो उस अनुशंसा के अनुसार 1068 रुपये प्रति क्विंटल कम है । दूसरी ओर इसी आयोग द्वारा पाम आयल के विकास के लिए तैयार योजना को स्वीकृत करने की अनुशंसा को स्वीकार किया गया है । यानि सरकार को जनहित एवं देश हित में जो कार्य करना चाहिए था, वह नहीं किया, वरन जो काम नहीं करना चाहिए था, उसको किया है ।