जयपुर, 13 फरवरी । आध्यात्मिक विश्वविद्यालय की तरफ से झारखंड महादेव मंदिर, महादेव मार्ग, प्रेमपुरा विलेज जयपुर में आज श्रीमद्भगवद्गीता श्लोकों के आधार पर एक आध्यात्मिक सेमिनार का आयोजन किया गया ।
सेमीनार के मुख्य वक्ता सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट पीबीके अमोल भाई ने कहा जैसे खाओगे वैसे बनेगा मन जैसे पियोगे पानी, वैसे बनेगी वाणी। उन्होंने बताया कि मन की संकल्पों में अगर विकारी संकल्प नेगेटिव संकल्प चल रहे हैं तो उस मन के वाइब्रेशन से अन्य भी अशुद्ध हो जाता है और उसके सेवन करने से हमारा मन भी प्रभावित हो जाता है इसलिए परमात्मा की याद में बनाया हुआ भोजन ही पवित्र होता उसमें कोई दोष नहीं होता है।
अमोल भाई ने राजयोग के मुख्य चार पिलर पहला ब्रह्मचर्य, दूसरा शुद्ध अन्न तीसरा दैवीय गुण, और चौथा सत्संग-सिर्फ एक ईश्वर का संग कानों में सिर्फ एक ईश्वर का ज्ञान और आत्मा में दैवीय गुण धारण करने चाहिए। उन्होंने बताया तुलसीदास ने 400 साल पहले बोला था झूठे देना , झूठे लेना ,झूठे भोजन झूठ चबै ना ।यह सेमीनार 6 फरवरी को जयपुर में आयोजित हुई है ।
उन्होंने कहा कि कलयुग घोर पापी युग अभी अपनी चरम सीमा पर बढ़ता चला जा रहा है अंतिम सांसे गिन रहा है परमाणु हथियार तैयार बैठे हुए हैं श्रीमद्भगवद्गीता में बोला है- 11/25- यह जो मेरी विकराल दाढ़ें हैं – एटम बम न्यूक्लियर बम हथियार हैं -जिसमें सारी सृष्टि चबाई जाने वाली है। आगे चलकर सड़कों पर नोटों की गड्डियां पड़ी रहेंगी लेकिन खाने के लिए दाना नहीं रहेगा ।
अमोल भाई ने पवित्रता का महत्व बताते हुए कहा यह सन्यासी महाराज खुद तो पवित्र रहते हैं लेकिन क्या आपने फॉलोवर्स को भी पवित्र रहने की शिक्षा देते हैं। यदि हजारों तादाद में अपने चेलों को पवित्र रहने की शिक्षा दें तो फिर इनको कौन पुछेगा । लेकिन सच्चाई यह है कि श्रीमद्भगवद्गीता अनुसार 3/37 में बताया गया कि काम महाशत्रु है इस संसार में इसको तू वैरी समझ । उन्होंने बताया दुनिया की जनसख्ंया भारी तादाद में बढ़ने का कारण ही काम विकार है और गीता है फैमिली प्लानिंग का शास्त्र । नई दुनिया है- सतयुग दैवी सृष्टि जहां श्रेष्ठ इंद्रियों से बच्चों की पैदाइश होती है ।
आध्यात्मिक विश्वविद्यालय की तरफ से आयोजित संगोष्ठी में मुख्य वक्ता ने कहा कि सारी दुनिया पवित्रता के सामने माथा टेकती है मंदिरों में भी पवित्र देवताओं की ही पूजा की जाती है जिनके सामने सभी नतमस्तक होते हैं। सनातन धर्म की स्थापना कब होती है ? शिव शंकर भोलेनाथ इस सृष्टि के आदि पुरुष हैं। उनके द्वारा ही नई दैवीय सृष्टि की शुरुआत होती है । परमात्मा सम्मुख आकर बाप- सद्गुरु – टीचर बनकर जब तक ज्ञान नहीं देते तब तक मनुष्यों का उद्धार नहीं हो सकता। और गीता ज्ञान सुनाने का समय अभी है ;जबकि दुनिया में पाप ,व्यभिचार, अत्याचार दिन-ब-दिन बढ़ रहा है तो परमात्मा ही आकर के इस सृष्टि का परिवर्तन कर सकते हैं और वे अभी कर रहे हैं। इस प्रकार गीता के श्लोकों के माध्यम से उन्होंने अध्यात्मिकता का वास्तविक परिचय देकर सभी श्रोताओं को आध्यात्मिकता की ओर प्रेरित किया।