मनुष्य जीवन में गुरु का विशेष स्थान होता है. गुरु को भगवान से भी बढ़कर माना जाता है. गुरु को महत्व देने के लिए गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है. इस पर्व को सभी धर्म के लोग बड़ी धूमधाम से मनाते है.
व्यक्ति के जीवन में गुरु का एक विशेष महत्व होता है. हमारे धर्म ग्रंथो में गुरु को भगवान् से बढ़कर बताया गया है. माता पिता अपने बच्चो को संस्कार देते है, पर गुरु सभी को अपने बच्चो के समान मानकर ज्ञान देते है.एक व्यक्ति का जीवन गुरु के अभाव में शून्य होता है. संस्कार और शिक्षा जीवन का मूल स्वभाव होता है. इनसे वंचित रहने वाला व्यक्ति बुद्दू होता है. जिसमें गुरु के ज्ञान का अभाव होता है.
गुरुओ का सम्मान करना हमारा कर्तव्य है, पर गुरु पूर्णिमा एक विशेष दिन होता है, जो गुरुओ को ही समर्पित होता है. इस दिन को हिन्दू, मुस्लिम, बौद्ध तथा जैन सभी धर्म के लोग बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाते है.
आषाढ़ माह की पूर्णिमा के दिन गुरु पूर्णिमा का उत्सव मनाया जाता है. यह हिन्दुओ के श्रेष्ठ रचयिता वेदव्यास जी जिन्होंने महाभारत की रचना की थी, उनके जन्मदिन के अवसर पर गुरु पूर्णिमा हर साल मनाई जाती है.क विद्यार्थी के जीवन में गुरु अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है. गुरु के ज्ञान और संस्कार के आधार पर ही उसका शिष्य ज्ञानी बनता है, गुरु मंदबुद्धि शिष्य को भी एक योग्य व्यक्ति बना देते है. गुरु के ज्ञान का कोई तोल नहीं होता है.
गुरु का महत्व जीवन उतना है, जितना चंद्रमा के जीवन में सूर्य का जब तक सूर्य के संपर्क में चंदा रहता है. वह चमकता है, पर जब संपर्क टूट जाता है, तो उसकी रोशनी घायब हो जाती है. इसी कारण गुरु के शब्द का अर्थ ही अन्धकार से उजाले की ओर होता है.गुरु पूर्णिमा के अवसर पर आज भी लोग अपने गुरु बनाते है. तथा जीवन में कल्याण के रास्ते को अपनाते है. गुरु को उस दिन अपने कार्यो पर गर्व होता है. जिस दिन उसका शिष्य एक बड़े ओदे पर पहुँचता है. गुरु अपने शिष्यों से कोई स्वार्थ नहीं रखते है, उनका उद्देश्य सभी का कल्याण ही होता है.
गुरु पूर्णिमा के दिन विद्यार्थी अपने गुरु के सम्मान में अनेक गतिविधिया करते है. शिष्यों द्वारा गुरु की पूजा की जाती है. तथा उन्हें ढेर सारा सम्मान और उज्ज्वल जीवन देने के लिए धन्यवाद देते है.इस दिन शिष्यों द्वारा अपने पहले गुरु अर्थात माता-पिता और परिवार को भी सम्मान दिया जाता है. तथा उन्हें अपना आदर्श मानकर उज्ज्वल जीवन का आशीर्वाद मंगाते है. तथा लाइफ के सच्चे मूल्य का ज्ञान लेते है.इस दिन विद्यालय कॉलेज और गुरुकुलो में शिक्षको और अपने गुरुओ को सम्मान के लिए कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है. तथा गुरुओ के सम्मान में गीत, भाषण, कविताए, नृत्य और नाटक किये जाते है.इस दिन वेदव्यास जी का जन्मदिन होता है, जिस कारण उनके शिष्य उन्हें सम्मान देते है. तथा उनके बारे में भी सभी को बताया जाता है. वेदव्यास जी के सूत्रों का अध्ययन किया जाता है.
इस उत्सव के इतिहास को लेकर दो मान्यताए प्रचलित है. हिन्दुओ के अनुसार इसी दिन भगवान शिव द्वारा अपने शिष्यों को ज्ञान दिया गया था. जिस कारण इसी दिन से हिन्दुओ ने इस पर्व की शुरुआत की थी.दूसरी मान्यता के अनुसार इसकी शुरुआत बौद्ध धर्म के संस्थापक महात्मा बुद्ध द्वारा किया गया था. माना जाता है, कि बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति के बाद उन्होंने ज्ञान का प्रसार-प्रचार शुरू किया जिसमे उनका पहला उपदेश जिसे हम धर्मचक्रपर्वत कहते है, जो सारनाथ में दिया गया था. उस उपदेश के कारण बौधो द्वारा इसकी शुरुआत की गई.ज्योतिष मान्यता के अनुसार ब्रहस्पति गृह को ग्रहों का गुरु माना जाता है. जिस कारण आषाढ़ की पूर्णिमा के दिन ज्ञान की प्राप्ति का शुभ अवसर होता है. जिस कारण इस दिन को गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है.