बीकानेर, 27 फरवरी। राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि भारत की कला शैैली प्राचीन काल से ही उच्च स्तरीय रही है। प्रकृति का परम्परा से सदैव नाता रहा है। नदी की मौज, मयूर के नृत्य और कोयल की बोली में भी संगीत है।
राष्ट्रपति मुर्मू सोमवार को बीकानेर के डॉ. करणी सिंह स्टेडियम में 14वें और बीकानेर में पहले राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव के उद्घाटन समारोह को संबोधित कर रही थीं। उन्होंने कहा कि देश में कई कलाएं और प्रतिभाएं अब भी कलाकारों के संगठित नहीं होने के कारण छिपी हुई हैं। ऐसी कला एवं संस्कृति को सामने लाना है, जिससे आने वाली पीढ़ियों तक इन्हें पहुंचाया जा सके।
राष्ट्रपति श्रीमती मुर्मू ने कहा कि ऐसे कलाकारों को आगे लाएं और उनकी प्रतिभा को आमजन तक पहुंचाएं। उन्होंने कहा कि प्रकृति का परंपरा और कला का विज्ञान से मेल जरूरी है। कला एवं संस्कृति के विकास और प्रचार-प्रसार के लिए टेक्नोलॉजी का उपयोग आवश्यक है। इंटरनेट का हमारी कला को लाभ मिला है। राष्ट्रपति ने कहा कि हम पश्चिम की ओर देखते हैं, जबकि हमें अपनी समृद्ध और संपन्न संस्कृति पर गर्व होना चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि सच्चे कलाकारों का जीवन तपस्या का उदाहरण होता है। इससे युवाओं को प्रेरणा मिलती है, सीखने को मिलता है।राष्ट्रपति मुर्मू ने राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव के आयोजन की प्रशंसा करते हुए कहा कि ऐसे आयोजन से राष्ट्रीय एकता और भावना मजबूत होती है। विभिन्न प्रदेशों की कला एवं संस्कृति जानने समझने का मौका मिलता है। कला के क्षेत्र की प्रतिभाओं को अपने हुनर के प्रदर्शन का अवसर प्रदान करते हैं।
राज्यपाल कलराज मिश्र ने कहा कि राजस्थान सात वार और नौ त्योहार वाला प्रदेश है। यह महोत्सव विभिन्न संस्कृतियों की एकता का प्रतीक है। राजस्थान की धरती के कण-कण में लोक कलाओं, संस्कृति और परंपराओं का जो रूप देखने को मिलता है, वैसा कहीं नहीं मिलता।
राज्यपाल मिश्र ने कहा कि रंग-बिरंगी सांस्कृतिक विविधता भारत की अमूल्य धरोहर है । विविध खानपान, परंपरा, रीति-रिवाज वाली हमारी संस्कृति अनेकता में एकता की सूत्रधार भी है।