धर्म और आस्था से बढकर साबित हुए रोजी रोटी ,विकास और स्थानीय मुद्दे

Narayan- Bareth, -Senior -Journalist -and -Former -Information- Commissioner -Rajasthan -Jaipur

नारायण बारेठ
वरिष्ठ पत्रकार और चिंतक

लोकतंत्र में कोई भी अपराजेय नहीं है।कर्नाटक चुनाव परिणाम इसकी पुष्टि करते है।इन चुनाव नतीजों ने देश की सियासत में उठे एक तरफा उफान और अभियान को झटका दिया है। साथ ही यह संदेश देने का प्रयास किया है कि भावनात्मक मुद्दों की भी एक सीमा है। पांच साल तक धर्म ,जाति ,आस्था और अस्मिता के नारो के बीच विचरण करते मतदाता ने रोजी रोटी ,विकास और अपने स्थानीय मुद्दों को ही तरजीह देना ही ठीक समझा।

इन चुनावों ने यह भी रेखांकित किया है कि मोदी शाह की जोड़ी भी कोई करिश्मा नहीं दिखा पाई। कर्नाटक में प्रधान मंत्री ने 19 रैली और छह रोड शो और गृह मंत्री अमित  शाह ने 16 सभाये और 15 रोड शो कर मतदाता को सत्तारूढ़ बीजेपी के राजतिलक करने  की जोरदार अपील की।लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ।जानकारी के मुताबिक मोदी शाह ने 46 विधानसभा क्षेत्रो में ताबड़तोड़ सभाये की और रोड शो किये। लेकिन वे इनमे से सिर्फ 15 सीटों पर ही बीजेपी को जीत दिलवा पाए।इसके पहले यह धारणा पोषित की गई कि मोदी मैजिक सब जगह काम करता है और किसी और की जरूरत नहीं है।बीजेपी ने घड़ी अपनी इस मान्यता  के चलते कर्नाटक के स्थानीय नेतृत्व को हाशिये पर रखा। बीजेपी को इसकी भी कीमत चुकानी पड़ी है।

यह तस्वीर तब और भी बदरंग हो जाती है जब बीजेपी के इतने ऊँचे दर्जे के  प्रचार प्रसार और तामझाम के बावजूद उसके 31 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। कांग्रेस को भी तब झटका लगा जब उसके एक दर्जन प्रत्याशियों को जमानत गवानी पड़ी।कर्नाटक में जब चुनावी बिसात बिछी ,बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत झोक दी। कहा गया कि भारत में बीजेपी ही वो पार्टी है जिसे चुनावी युद्ध न केवल  लड़ना आता है बल्कि जीतना भी आता है।इसी फेर में बीजेपी ने कर्नाटक में कोई 3116 चुनावी रैलियां आयोजित की और उसके नेताओ ने 311 मंदिर मठो की फेरी लगाई।पिछले कुछ सालो में कर्नाटक की राजनीति में  मठो की भूमिका अहम हो गई है। लगभग सभी प्रभावशाली जाति समुदायों के मठ है।

बीजेपी ने इन चुनावो में 9125 जन  सभाएं की और  9077 नुक्क्ड़ सभाएं की।पार्टी के 128 केंद्रीय नेताओ और 15 केंद्रीय मंत्रियो ने कर्नाटक में प्रचार में अपनी उपस्थिति से चुनावी लड़ाई को दिलचस्प बना दिया था। बीजेपी के लिए किसी भी चुनाव में भावनात्मक मुद्दों का प्रयोग कोई नया नहीं है। लेकिन 2014 के बाद यह और घनीभूत हुआ है।खुद प्रधानमंत्री मोदी ने बजरंग बलि का जय घोष किया और मतदाताओं को इसे जेहन में रखने की अपील की। कांग्रेस शिविर से जब बजरंग दल पर रोक लगाने की बात आई तो इसे बड़ा मुद्दा बनाया गया और अनेक विश्लेषकों ने इसे कांग्रेस की बड़ी भूल करार दिया / लेकिन नतीजों ने इसके उल्ट साबित किया।

अब तक भ्रष्टाचार को लेकर  बीजेपी कांग्रेस पर हमलावर रही है। लेकिन यह पहली बार हुआ कि यही मुद्दा बीजेपी के विरुद्ध कारगर साबित हुआ और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर राज्य की बीजेपी सरकार  कटघरे में खड़ी हो गई।कर्नाटक में चुनावी बिगुल बजने के कुछ वक्त बाद ही यह सामनेआने लगा था कि वहां हिजाब ,हलाल और नमाज मुद्दा नहीं बन पाए है। एक सर्वे में कर्नाटक के  लोगो ने कहा उनके लिए रोजगार जैसे मुद्दे अहम  है।लेकिन कोई इस पर यकीन करने को तैयार नहीं था। क्योंकि विगत कुछ सालो में ऐसा वातावरण बनाया गया कि मोदी अजेय है। कहा गया कि किसी और नेता की जरूरत ही नहीं है।

कर्नाटक को दक्षिण भारत में  बीजेपी की जीत का प्रवेश द्वार कहा जाता रहा है। इस राज्य में  बीजेपी को चुनावी जीत की कामयाबी तक ले जाने में लिंगायत सम्प्रदाय की अहम भूमिका रही है।पर इन चुनावो से पहले इशारे मिलने लगे थे कि लिंगायत समुदाय अब बीजेपी से दूर जा रहा है। कोई 900 साल पहले स्थापित इस समुदाय के सिद्धांत और दर्शन में सामाजिक  भेदभाव के लिए कोई जगह नहीं है। यह समावेशी नीति पर जोर देता है और 2020 में लिंगायत समुदाय ने अपने एक मठ के लिए मुस्लिम महंत भी चुना।कर्नाटक और उसके दो निकटवर्ती राज्यों में कोई 3500 मठ है। ऐसे ही दूसरा बड़ा समुदाय वोकलिंगा है। कर्नाटक में राज्य कांग्रेस अध्यक्ष शिवकुमार इसी समुदाय से है।

इन चुनावों से पहले  बीजेपी  ने टीपू सुल्तान को मुद्दा बनाया और बहुसंख्यक वर्ग को गोलबंद करने का जतन किया। हिन्दू संगठनों ने इसके लिए एक नया किस्सा पेश किया और यह  स्थापित करने का प्रयास किया कि टीपू सुल्तान को अंग्रेज हुकूमत ने नहीं बल्कि वोकलिंगा समुदाय के दो बहादुर लड़ाकों यूरी गोडा और नन्जे गोड़ा ने ढेर किया था। इसके साथ ही इन दोनों पर एक फिल्म बनाने का प्रोजेक्ट भी हाथ में लिया गया / मगर वोकलिंगा समुदाय ने इसे स्वीकार नहीं किया। इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई / वोकलिंगा समुदाय के लोगो ने साफ़ कह दिया कि इतिहास के साथ छेड़छाड़  बर्दाश्त नहीं की जाएगी।इससे हिन्दू संगठनों ने फिल्म का अपना प्रस्ताव वापस ले लिया। .

इन चुनाव परिणामों से लगता है प्रचार तंत्र कितना ही मजबूत हो ,लोग अंतत बुनियादी मुद्दों पर ही लौट आते है। उनके लिए जीवन में रोजमर्रा के मुद्दे अहम है।पर अब यह दलील दी जा  रही है उत्तर भारत की  फिजा अलग है।इस लिहाज से अब छतीसगढ़ ,मध्य प्रदेश और राजस्थान के चुनाव कसौटी पर होंगे।

मासिक समाचार पत्र माइंड प्लस के 15 जून 2023 के अंक से साभार