ब्राह्मणों से दान लेने का हक सिर्फ कायस्थों को ही है

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ब्राह्मणों को हर जाति से दान लेने का अधिकार है लेकिन कायस्थ है कि उन्हे ब्राह्मणों से दान लेने का अधिकार है ।भगवान राम के राजतिलक में चित्रगुप्तजी का निमंत्रण छूट गया था, जिसके कारण भगवान् चित्रगुप्त ने नाराज होकर अपनी कलम रख दी थी। उस समय परेवा काल शुरू हो चुका था।

दूसरी तरफ सभी देवी-देवता को भगवान राम ने देखा लेकिन भगवान चित्रगुप्त वहां कहीं दिखाई नहीं पड़े तो भगवान राम ने भगवान चित्रगुप्त के न आने के कारणों की पड़ताल की।पड़ताल में पता चला कि गुरु वशिष्ठ के शिष्यों ने भगवान चित्रगुप्त को निमंत्रण पहुंचाया ही नहीं था।उधर स्वर्ग और नरक के सारे काम रुक गये थे, प्राणियों का लेखा जोखा ना होने के कारण ये तय कर पाना मुश्किल हो रहा था कि किसको कहाँ भेजा जाएI

तब गुरु वशिष्ठ की इस गलती को समझते हुए भगवान राम ने अयोध्या में भगवान् विष्णु द्वारा स्थापित भगवान चित्रगुप्त के मंदिर में गुरु वशिष्ठ के साथ जाकर भगवान चित्रगुप्त की स्तुति की और गुरु वशिष्ठ की गलती के लिए क्षमायाचना की, जिसके बाद भगवान राम का आग्रह मानकर चित्रगुप्तजी ने लगभग ४ पहर अर्थात २४ घंटे बाद पुन: कलम-दवात की पूजा करने के पश्चात उसको उठाया और प्राणियों का लेखा-जोखा लिखने का कार्य आरम्भ कियाI गौरतलब है कि श्री अयोध्या महात्मय में भी इस मंदिर को श्री धर्म हरि मंदिर कहा गया है।

धार्मिक मान्यता है कि अयोध्या आने वाले सभी तीर्थयात्रियों को अनिवार्यत: श्री धर्म-हरि जी के दर्शन करना चाहिये, अन्यथा उसे इस तीर्थ यात्रा का पुण्यफल प्राप्त नहीं होता।तभी से परेवा काल शुरु होने के बाद सभी कायस्थ 24 घंटे के लिए कलम दवात रख कर लिखने पढने का काम छोड़ते हैं, और इसी घटना के बाद कायस्थ ब्राह्मणों के लिए भी पूजनीय हो गए, और इस घटना के पश्चात मिले वरदान के फलस्वरूप सबसे दान लेने वाले ब्राह्मणों से दान लेने का हक़ भी सिर्फ कायस्थों को मिला।

तभी से कायस्थ दीपावली की पूजा के पश्चात कलम को रख देते हैं और । यमदुतिया के दिन भगवान चित्रगुप्त का विधिवत कलम दवात पूजन करके ही कलम को धारण करते है। कहते है तभी से कायस्थ ,ब्राह्मणों के लिए भी पूजनीय हुए और इस घटना के पश्चात मिले वरदान के फलस्वरूप सबसे दान लेने वाले ब्राह्मणों से दान लेने का हक़ सिर्फ कायस्थों को ही है ।