प्रद्युम्न शर्मा
वरिष्ठ पत्रकार
राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली सरकार ने पिछले 5 सालों में अनेक कल्याणकारी कार्य किए है। सरकार की विभिन्न जन कल्याण योजनाओं का प्रत्यक्ष लाभ राज्य की जनता को मिलना शुरू हो चुका है। इन्ही योजनाओं में से एक ,पुरानी पेंशन योजना लागू करने की घोषणा है जिससे राज्य कर्मचारियों और विभिन्न निगम बोर्ड के कर्मचारियों में हर्ष व्याप्त है।
हालांकि राष्ट्रीय पेंशन योजना लागू होने के बाद से कर्मचारियों के हिस्सों से की गई कटौती का लगभग 39000 करोड रुपया केंद्र सरकार से वापस प्राप्त करना इस योजना का प्रमुख आर्थिक स्रोत होगा। राजनीतिक विरोधाभासों के चलते केंद्र सरकार अभी तक यह राशि राज्यों के हिस्से में लौटाने पर सहमत नहीं हो रही है। इस इकलौती बाधा को दूर करने के बाद कर्मचारियों के जीवन में खुशियां लाने की राह और सुगम हो जाएगी। पुरानी पेंशन योजना लागू करने की सदिच्छा राज्य सरकार की जनकल्याणकारी सोच का प्रतिनिधित्व करती है।
सबसे रोचक पहलू यह है कि छत्तीसगढ़ और राजस्थान सरकारों द्वारा की गई पहल के बाद देश के अन्य राज्यों में भी पुरानी पेंशन योजना लागू करने की मांग तेज हो गई और कई राज्यों ने इस योजना को लागू भी किया लेकिन भारत सरकार अभी भी अपने इस रुख पर कायम है कि वह राष्ट्रीय पेंशन योजना को भी बरकरार रखेगी।
हालांकि केंद्र सरकार इस योजना के कारण असमंजस में तो है क्योंकि यदि वह अपनी जिद पर कायम रहती है उसके जनाधार में कमी हो सकती है और 2024 का लोकसभा चुनाव जीतने में उन्हें काफी मशक्कत करनी पड़ सकती है। चार राज्यों में काबिज कांग्रेस पार्टी को अपनी इस महत्वकांक्षी योजना के कारण जनता के बीच काफी लोकप्रियता प्राप्त हो रही है।
केंद्र सरकार ने पुरानी पेंशन व्यवस्था को वर्ष 2004 में हटाकर राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली लागू कर दी थी। इस प्रणाली के तहत पेंशन राशि, कुल जमा राशि और निवेश पर आए रिटर्न पर तय होती है। इसमें मूल वेतन और महंगाई भत्ते का 10% कर्मचारियों को मिलता है और इतना ही योगदान राज्य सरकार भी देती है। राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली शेयर बाजार आधारित व्यवस्था है और इसका भुगतान भी बाजार के अनुसार ही होता है। इसके विपरीत पुरानी पेंशन प्रणाली कर्मचारियों के लिए ज्यादा हित कारी है जिसमें सेवानिवृत्ति के अंतिम माह में मिले वेतन की आधी राशि कर्मचारी को पेंशन के रूप में हर माह प्राप्त होती है। पुरानी पेंशन प्रणाली के तहत पेंशन राशि को बेसिक वेतन और महंगाई दर से निर्धारित किया जाता है। इस राशि का भुगतान सरकारी खजाने से किया जाता है।
सरकार की इस कल्याणकारी योजना में बाधक बन रही केंद्र सरकार का दृष्टिकोण समझ से परे है। इस बारे में पेंशन कोष नियामक एवं विकास प्राधिकरण ने भी संबंधित राज्यों को सूचित किया है की राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली के तहत कर्मचारियों की जमा बचत राशि पर राज्यों का दावा कानूनी रूप से मान्य नहीं है। केंद्र सरकार ने राज्य कर्मचारियों की जमा पेंशन कोष को शेयर मार्केट से संबद्ध करके कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के बाद आने वाले संकटों से जूझने के लिए अकेला छोड़ दिया था। आर्थिक साधनों की जरूरत व्यक्ति के सेवानिवृत्त होने के बाद ज्यादा बढ़ जाती है। क्योंकि कर्मचारी शारीरिक रूप से कमजोर हो चुका होता है ,वृद्धावस्था उस पर हावी होने लगती है और परिवार के दायित्व भी बढ़ने लगते हैं।
ऐसे में लाखों राज्य कर्मचारियों का पुरानी पेंशन योजना ही एक मात्र सहारा था जिसके बल पर वह अपना घर परिवार भी चला सकते थे और बच्चों के भविष्य भी संवार सकते थे। कांग्रेस पार्टी और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कर्मचारियों की इस पीड़ा को गहराई से समझा और पुरानी पेंशन योजना लागू करने का साहसिक कदम उठाया। हालांकि राज्य सरकार की बजट पर इस पेंशन योजना से कुछ भार बढ़ता है लेकिन भावनात्मक रूप से देखा जाए तो जिस कर्मचारी ने अपना पूरा जीवन सरकारी सेवा में लगाया हो उसे वृद्धावस्था में सरकार का ही तो सहारा होगा।
इस मानवीय दृष्टिकोण की व्यापक प्रशंसा हुई और कर्मचारी संगठनों ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का अभिनंदन भी किया।
अब पूरे देश में कार्यरत कर्मचारी इसी पैटर्न पर सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन के लिए आशा लगाए बैठे हैं। विश्वास तो यही किया जाना चाहिए कि केंद्र सरकार राज्यों पर भरोसा करके उनकी जमा पूंजी लौटाएगी । संविधान भी यही कहता है कि केंद्र और राज्य सरकारों को जनकल्याण की मसलों पर आपस में तालमेल करके कदम आगे बढ़ाना चाहिए।
@ मासिक समाचार पत्र माइंड प्लस के 15 जून 2023 से साभार