मिर्ज़ा ग़ालिब पर दो कार्यक्रम

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Ajmer अजमेर। 30 दिसम्बर । अलविदा के लिए तैयार साल के आखिरी दौर में उर्दू और फ़ारसी के कालजयी शायर मिर्ज़ा ग़ालिब पर शहर में दो कार्यक्रम हो गए । दोनों साहित्यिक कार्यक्रमों ने शहर के साहित्यिक जगत में एक ताज़गी का एहसास करा दिया । दोनों कार्यक्रमों में एक महीने का फासला भी नहीं रहा ।

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पहला कार्यक्रम अजयमेरु प्रेस क्लब में मिर्ज़ा ग़ालिब पर विशेष वार्ता ” गुफ्तगू ” था । दूसरा प्रभा खेतान फाउंडेशन के बैनर तले ” कलम ” हुआ । दोनों ही कार्यक्रमों के किरदार भी समान रहे । दोनों का विषय भी एक ही था । इन कार्यक्रमों में पत्रकार , लेखक और चित्रकार विनोद भारद्वाज की कृति ” गली क़ासिम जान : ज़िन्दगी नामा मिर्ज़ा ग़ालिब ” पर चर्चा हुई । यह मिर्ज़ा ग़ालिब की जीवनी है ।
प्रेस क्लब के कार्यक्रम ” गुफ्तगू ” में विनोद भारद्वाज मुख्य वक्ता थे और अध्यक्षता पद्मश्री डॉ.चंद्रप्रकाश देवल ने की । जबकि ” कलम ” में भी इन्हीं दोनों की जुगलबंदी रही ।

दोनों कार्यक्रमों में भारद्वाज ने ग़ालिब की जिंदगी , उनकी तकलीफों , मजबूरियों और लगातार सदमों की लम्बी दास्तान को तफ़्सील से उकेरा । ग़ालिब की आदतों शराब और जुए की लत ने उन्हें कर्जदार बना दिया । इसीलिए अपने मकान की दिली ख्वाहिश कभी पूरी नहीं हो पाई । इसकी मार्मिक कल्पना ग़ालिब ने अपनी शायरी में की । जिसमें उन्होंने अपनी कब्र को ही अपना मकान मान लिया ।

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ब्रिटिश हुकूमत से पेंशन की आस में ग़ालिब ने ऐसा कुछ अपनी शायरी में नहीं लिखा , जो वह लिख सकते थे । उनके पारिवारिक तनावपूर्ण रिश्तों को भी बारीकी से बताया । खासकर ग़ालिब की उनके एक साले से तनावपूर्ण रिश्ते का भी जिक्र किया ।

कार्यक्रम ” कलम ” में डाॅ.देवल ने वार्ताकार की भूमिका बखूबी निभाई । इसमें उन्होंने भारद्वाज से ग़ालिब के बारे में कई ऐसी बातें निकलवा लीं , जो ” गुफ्तगू ” में वह नहीं कह पाए थे । आम तौर पर पत्रकार ही सवाल करते हैं । पर इस कार्यक्रम में डॉ .देवल ने एक पत्रकार को जवाब देने के लिए मजबूर कर दिया ।एक पत्रकार , लेखक के साहित्यकार से उच्च स्तरीय वैचारिक घर्षण ने शहर के साहित्य प्रेमियों को एक नई ताजगी का एहसास कराया ।