क्या संकेत देते हैं 7 उपचुनावों के नतीजे ? 

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 गोविन्द चतुर्वेदी

वरिष्ठ पत्रकार और मुख्यमंत्री के पूर्व मीडिया सलाहकार

 

देश के छह राज्यों की सात विधानसभा सीटों के चुनाव परिणाम 8 सितम्बर को आ गए.. अगर इन चुनावी नतीजों को राष्ट्रीय स्तर बने हुए दो राष्ट्रीय गठबंधनों – भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राजग और कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया के सांचों में डालकर देखें तो पहले को तीन और दूसरे को चार सीट प्राप्त हुई है.. राजग को मिली तीनों सीटें भारतीय जनता पार्टी के खाते में गई हैं जबकि इंडिया को मिली चार सीटें कांग्रेस, झामुमो, समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस को प्राप्त हुईं..

इन परिणामों को इस दृष्टि से भी देखा जा सकता है कि, राजग या भाजपा को मिली कामयाबी केवल एक छोटे से क्षेत्र – त्रिपुरा में दो सीट और उत्तराखंड में एक सीट की है.. दोनों राज्यों में भाजपा सत्ता में है.. राष्ट्रीय राजनीति की दृष्टि से इन दोनों राज्यों का महत्त्व इतना ही है कि, उनमें लोकसभा की कुल 7  सीट हैं.. 5 उत्तराखंड में और 2  त्रिपुरा में.. इसके विपरीत इंडिया को मिली सफलता उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड और केरल जैसे देश के बड़े राज्यों तक फ़ैली हुई है.. इन राज्यों के नतीजों से निकला सन्देश कितना महत्वपूर्ण है यह सब जानते हैं..अकेले उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 सीट हैं..  पश्चिम बंगाल में 42 , केरल में 20 और झारखण्ड में 14 सीट है.. लोकतंत्र और राजनीति जनधारणा पर चलते हैं..

भारतीय जनता पार्टी हिन्दुओं का और ओवेसी की आल इंडिया मुस्लिम मुशावरत दोनों धर्मों से जुड़े लोगों का कितना साधती हैं और इनकी आड़ में कितना राजनीति करती हैं , यह  सब जानते हैं लेकिन यह आम धारणा बना दी गई है कि, भाजपा हिन्दू और मुशावरात मुस्लिमों का हित साधन करती हैं.. यही बात इन चुनावी नतीजों पर लागू होती है.. भाजपा द्वारा इंडिया बनाम भारत, सनातन और जी -20 से एक छवि बनाने के बावजूद अगर इन 156 लोकसभा सीटों वाले पांच  राज्यों के उपचुनाव क्षेत्रों वाले मतदाताओं ने अपने -अपने प्रदेशों में भाजपा को नहीं जीतने दिया तो उसका एक सन्देश है..

इसका मतलब यह है कि, वहां के मतदाता महंगाई-बेरोजगारी से परेशान हैं, वहां के मतदाता मणिपुर में जो हो रहा है उससे परेशान हैं, वहां के मतदाता देश की संसद और विधानसभाओं में जो हो रहा है, उसे नापसंद कर रहा है, वह बड़े पैमाने पर हो रहे दलबदल और चुनी हुई सरकारों को गिराने के खेल को नापसंद कर रहा है.. आबादी और जनसंख्या के हिसाब से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश की घोसी सीट का परिणाम इसका जीता-जागता उदाहरण है.. घोसी सीट पर पिछले विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के टिकट पर जीते दारा सिंह चौहान इस्तीफा देकर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। भाजपा ने उपचुनाव में उन्हें अपना उम्मीदवार बनाकर मैदान में उतार दिया.. सामने आये समाजवादी पार्टी के सुधाकर सिंह.. उत्तर प्रदेश में योगी  आदित्यनाथ की “ मजबूत सरकार “ होते हुए और एक दर्जन से ज्यादा मंत्री-सांसदों के क्षेत्र में डेरा डालने के बावजूद दारासिंह चुनाव हार गए.. हारे ही नहीं 43000 वोटों के भारी अंतर से हारे..इंडिया गठबंधन के लिए केरल में कांग्रेस चांडी ओमान ने यह जीत 36000 से भी अधिक वोटों से हासिल की. यहाँ भाजपा के एल लाल को महज 6500 वोट मिले और उन्हें अपनी जमानत तक खोनी पडी..

इतनी ही बड़ी जीत इंडिया को झारखण्ड के डुमरी में 17000 मतों से मिली.. पश्चिम बंगाल के धुपगुड़ी में जरूर यह जीत महज 4300 वोटों से हुई लेकिन यहाँ महत्वपूर्ण तृणमूल का इसे भाजपा से छीनना रहा.. इसके विपरीत भाजपा की तीन में से दो सीटों की जीत बहुत कम अंतर से रही.. उत्तराखंड के बागेश्वर में यह 2400 और त्रिपुरा के बौक्सनगर में 3909 से कामयाब हुई.. त्रिपुरा के धनपुर में जरूर उसने माकपा उम्मीदवार पर 19000 वोटों क अंतर से प्रभावी जीत दर्ज की.. कहने का अर्थ, भाजपा के बजाय इंडिया गठबंधन के दलों की जीत ज्यादा जगह और ज्यादा अंतर के साथ ज्यादा लोकसभा सीट और व्यापक असर डालने वाले राज्यों में हुई.. भाजपा की इस हार के लिए महंगाई और बेरोजगारी के साथ अन्य कारण तो जिम्मेदार हैं हीं , बड़ा कारण भाजपा की अपनी अंदरूनी राजनीति और असंतोष भी है.. यह किसी से छिपा नहीं है कि, लोग आज की भाजपा में चाल,चरित्र और चेहरे की बात करने वाली पुरानी भाजपा को ढूंढते हैं लेकिन ढूंढते रह जाओगे की तर्ज पर वह कहीं नजर नहीं आ रही.. जो नजर आ रही है वह, कॉर्पोरेट हाउस की तरह चलने वाली भाजपा है जिसके दफ्तरों में प्रवेश के लिए उसकी कार्यकर्ताओं को बड़ी मशक्कत करनी पड़ती है..

पार्टी की ऐसी सूरत से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी खुश नहीं बताया..इस विषय पर विस्तार से कभी और  लेकिन अभी इतना ही कि, जैसे कभी कांग्रेस को कांग्रेस ने हराया, वैसे ही स्थिति अब भाजपा में हैं.. पार्टी पर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री श्री अमित शाह के वर्चस्व से परेशान बड़े-बड़े नेता अब पार्टी को जिताने के बजाय उसे हराने के लिए काम कर रहे हैं.. ऐसा नहीं है कि, मोदी-शाह की जोड़ी को यह पता नहीं है.. वे भी सब जानते हैं.. ऐसे में दोनों ओर से शह और  मात का खेल चल रहा है.. भाजपा के लिए ख़राब बात यह भी है कि, ऐसी सूरत देश के अधिकाँश राज्यों में है.. हर राज्य में ताकतवर नेताओं के समूह बने हुए हैं और कई राज्यों में तो वे मुखर होकर बोल रहे हैं.. मध्यप्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री साध्वी उमा भारती और लोकसभा की पूर्व अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन के हालिया बयान इसके गवाह हैं.. मध्य प्रदेश के साथ इसी वर्ष  विधानसभा चुनाव में जा रहे राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना की पार्टी इकाइयों के हालात भी ऐसे ही है.. मिजोरम बहुत छोटा है..

इन सब हालात के साथ यदि हम इन छह राज्यों के चुनावी नतीजों को देखें तो लगता है कि, यह इसी वर्ष होने वाले पांच राज्यों और अगले वर्ष की शुरूआत में होने वाले आम चुनावों को भाजपा के लिए कठिन बनाने का संकेत तो देते हैं.. सब कुछ इस पर निर्भर करता है कि, भाजपा,संघ और मोदी-शाह इन  हालात से कैसे पार पाते  हैं और इंडिया गठबंधन इन परिस्थितियों का कैसे और कितना लाभ उठा पाती है ?

साभार :मासिक समाचार पत्र ​माइंड प्लस 15 सितम्बर 2023