लेखकों से देश की पहचान होती है- कृष्ण कल्पित

Writers identify the country - Krishna Kalpit-jaipur-rajasthan

Jaipur जयपुर,2 अगस्त ।  उपन्यास सम्राट प्रेमचंद जी की 141वीं जयंती पर राजस्थान प्रगतिशील लेखक संघ के तत्वावधान में यहां स्वामी कुमारानंद हाॅल में ‘‘नए रचनाकारों के लिए प्रेमचंद‘‘ विषय पर संगोष्ठी का सफल आयोजन किया गया।

वरिष्ठ कवि गोविंद माथुर की अध्यक्षता और कृष्ण कल्पित एवं सुप्रसिद्ध कथाकार डॉ लक्ष्मी शर्मा के सानिध्य में युवा कथाकारों ने प्रेमचंद की परंपरा, साहित्य और उनके विचारों का अपने लेखन और जीवन में महत्व पर अनुभव साझा किए।

संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि गोविंद माथुर ने कहा कि प्रेमचंद अपने समय के महान कथाकार थे और आज भी प्रासंगिक हैं। वे चेखव और गोर्की के समकक्ष थे। उन्होंने कहा कि समय और समाज बदला है लेकिन समस्याएं आज भी यथावत हैं। प्रेमचंद ने अपने लेखन के माध्यम से स्वाधीनता आंदोलन में जन चेतना जगाने का काम किया। उन पर महात्मा गांधी के जीवन का गहरा प्रभाव था। गांधीजी हिंदू मुस्लिम एकता के लिए तो प्रेमचंद हिंदी और उर्दू की एकता की बात करते थे। आज साहित्य राजनीति के पीछे चल रहा है जो ठीक नहीं है।

प्रसिद्ध कवि कृष्ण कल्पित ने कहा कि लेखकों से देश की पहचान होती है। प्रेमचंद का जितना विरोध किया गया, वे हमारे लिए उतने ही प्रासंगिक होते गए। उन्हें ब्राह्मणद्वेषी, सामन्तवाद विरोधी, दलित विरोधी तक कहा गया लेकिन उन्होंने सच को थामे रखा और लेखन कर्म से झुके नहीं। आज का युवा भी उनसे निरन्तर प्रेरणा ले रहा है। उन्होंने कहाकि जब भी समाज और देश मुश्किल में या अंधेरे में आता है लेखक और विचारक ही राह दिखाते हैं। प्रेमचन्द की कहानियों के पात्र हमारे समाज के आसपास के बल्कि पारिवारिक पात्रों की भांति हैं। वे गरीबों, सताए हुए, रेहड़ी वाले और हाशिए के लोगों के लेखक रहे। प्रेमचन्द हजारों वर्षों तक जिन्दा रहेंगे। वे केवल गांवों के लेखक नहीं थे बल्कि उन्होंने शहरी विदू्रपताओं और विडम्बनाओं को भी अपनी लेखनी में उकेरा है।

सुपरिचित कथाकार डाॅ. लक्ष्मी शर्मा ने कहाकि प्रेमचन्द अपने बिगाड़ की परवाह किए बिना न्याय की बात कहने से कभी चूके नहीं। आज समय इतना बदल गया है कि हम यथावत शिल्प और कथ्य में वैसी बात कह नहीं सकते। हमें लेखकीय दायित्व निभाते हुए मौजूदा समस्याओं पर अंगुली रखनी चाहिए।

उन्होंने कहा, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश की आजादी के 75 वर्ष बाद भी प्रेमी जोड़ों को निःवस्त्र कर घुमाया जाता है, दलित व्यक्ति के दूल्हे को घोडे़ से उतार दिया जाता है। लेखकों को हमारे इर्द-गिर्द के पात्रों पर दृष्टि विकसित करनी होगी और यथार्थ एवं संवेदना के साथ समस्याओं को उठाना होगा।

युवा लेखकों महेश कुमार, नीतू मुकुल, भागचन्द गुर्जर, शिल्पी माथुर, नितिन यादव ने स्वयं के रचना कर्म को प्रेमचन्द से जोड़ते हुए उनसे मिली सीख के संदर्भ में अपने अनुभव साझा किए।

प्रगतिशील लेखक संघ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य वरिष्ठ व्यंग्यकार फारूक आफरीदी, प्रलेस के प्रदेश महासचिव प्रेमचन्द गांधी और पूर्व महासचिव ओमेन्द्र मीणा ने प्रेमचन्द के साहित्यिक अवदान और प्रगतिशील विचार को आगे बढ़ाने में उनकी महती भूमिका पर गहन चर्चा की। कार्यक्रम का सफल संचालन एसोसिएट प्रोफेसर डाॅ. विशाल विक्रम सिंह ने किया॥